Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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थाइरे लो ॥ तिण ॥ ६ ॥ जिनदास जी ने पौषध शाळा माइ । आइ उत्तम वधाइरे लो। ॥ सुण दम्पती ने सहू हाई ।सज हुवा संघ सघलाइरे लो ॥ तिण ॥७॥ राजा प्रजा । अति आनन्दे । आया ग्राम के बारे रेलो । मुनीवर दीठा वाहण तजीया । पंच अभीगम धारेरे लो ॥ तिण ॥ ८॥ सचित वस्तु सहू दूरी मेली। अभीमान दर्श चिन्ह छोडे-IN रे लो ॥ मुख यत्नाये उत्तराखण कीनो । नम्र भाव कर जोडेरे लो ॥ तिण ॥ ९ ॥अदूर सामंत ते सन्मुख आइ । तिखुत्तो अंग नमाइरे लो॥ करांजली ग्रही करीवंदणा। योगासने बेठाइरे लो ॥ तिण ॥ १० ॥ आगल आइ जिनदास वन्दे । मुनीवर तस ओलख्या
लो। नाम लइने तास बुलाया । जिनदास जोइ हर्षाइरे लो ॥ तिण ॥११॥ अहो गुरुजी ज्ञानका दाता । रुडा दर्शन दीधाइरे लो ॥ घणा वर्षे मनोर्थ फलीया । अ.IN त्यानन्द उमाइरे लो ॥ तिण ॥ १२ ॥ अहो २ आज अनंद घन प्रगट्या । पतीत पावन कीधारे लो ॥ आप दरसणे श्वामी पाप पणास्या । हूया मनार्थ सिधारे लो॥ तिण ॥ १३॥ ॥ सुगुणी पण जोइ पटांतर । अत्यंत आनन्द पाइरलो ॥ थयायोग स्थाने सहू बेठा । कथा सुणन उमंगाइरे लो ॥ तिण ॥ १४ ॥ राजा पूछे महाराजा सेती । यां सेठ में आ प पहलानोरे लो ॥ दानी धर्मी बहु गुण सागर । हम नयरे प्रगटाणारे लो ॥ तिण ॥

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