Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 104
________________ अत्गुरु को संग ॥ सामायिका दी सीखीया । चडयो ज्ञानको रंग ॥ २ ॥ यौवन वय त भया । श्वधर्मी कुल मांय ॥ जोगी जोडी मिलाय के । ठाट करी परणाय ३ ॥ समर्थ जाणी कुँवरने । सोप्यो सहू रुजगार ॥ खंध धार धारण किया । आरंभ सचित निवार ॥ ४ ॥ सामायिक प्रतिक्रमणो । पौषधने उपवास । सधर्मी संग वृद्धी करे । जैन धर्म प्रकाश ॥ ५ ॥ ● ॥ ढाल ५ पांचमी ॥ आज आणंद घन जोगीश्वर आया ॥ यह० ॥ तिण काले मुनी धर्मजय ऋषि । चरण करण गुण धारीरेलो || अष्ट संपदा करके शो हे । छत्तीस गुण भंडारा रेलो ॥ तिण ॥ १ ॥ अप्रति बन्ध जिन पदे विचरता । घणा मुनी परवारी रे लो। उ गण शशी की परे सोहे । सम दम खम नम सारीरे लो || तिण ॥ २ ॥ समोसर्या पोलासपुर बारे । मनो रम्य बाग मझारेरे लो ॥ वन पालक जोइहरषायो । वंदे वारंबारेरे लो ॥ तिण ॥ ३ ॥ अनुज्ञालीवी जी वनपालककी फ्रासुख वस्तु जाचीरे लो ॥ तप संयमे निजात्म ध्यावे । रह्या ज्ञान ध्यान में राचीरे लो | ॥ ति ॥ ४ ॥ वन पालक तब करी सजाइ । नृप कचेरीये आइरे लो || मुनी आगम की दीनी बधाइ । सुण भूप सभा हर्षाइरे लो || पुण्य ॥ ५ ॥ चतुरंगी शैन्य सज कराइ । नगरमे खबर पठाइरे लो ॥ सुणी भव्य वृन्द अत्या नन्द पाइ । वंदण भणी सज खण्ड ४ चंद्र ताराने ९०

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