Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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धन माल ॥ सकेटे ठवी गुप्त मारगे । दीया प्रागपुर पहोंचाय ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ मीठी । मांजी के घरे गया।जिनदास नाम लीध ॥ मांजी घणी खुशी हुइ । आदर घणो दी। ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ सुखे समाधे रही तिहां । कियो कासीद तैयार ॥ पत्र लिखी पठावी । यो । पोलासपुर तेवार ॥ पुण्य॥१६॥ पत्र पढी जिनदास जी । आर्त करी लोकाचार ॥ दान धर्म कियो घणो । शोक टल्यो ते वार ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ फिर कासीद पत्र आवीयो। खटला सहित तीनो भ्रात ॥ मिलण भणी आवे इहां । सहू सुणी हरकात ॥ पुण्य ॥ १८॥ सामे चाल्या ठाट पाट थी। जिम कुल कीर्ती होय ॥ तीनों जिनदास संकेत |जिम । आया अश्व रथे सोय ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ समागम शुभ महूर्ते । मिल्या वाह पसार ॥ तीनो को ठाट देखी करी।लोक हा अपार ॥ पुण्य ॥ २० ॥ शुभ महूर्ते आया ग्राम में । जिनदास के घेर । आणंद में रहे सहू । तजी इर्षा वैर ॥ पुण्य ॥ २१॥ सवा नव मांस बीतीया । सुगणी प्रसव्यो पूत ॥ आणंदमे बृद्धाहुइ । यह पुष्यका सूत ॥ पुण्य ॥ |२२ ॥ नाम धर्मोदय स्थापीयो । सुखे बृद्धीथाय ॥ चतुर्थ खन्ड ढाल चतुर्थी । ऋषि आश मोलख गाय ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ ७ ॥ दोहा ॥ शुक्ल शशीपरे कुँवरजी । हाथो हाथ वृद्ध-N थाय ॥ वर्स बर्षका जव हुया । विद्या भ्यास कराय ॥ १॥ संसारीक कला भया। कर

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