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१५ ॥ कहे मुनीवर हमने धनवंत की । खुशामद कुछ नाहींरेलो || धर्मी सहू को वह भ लागे । तोसाधूको केणो कांइरेलो ॥ तिण ॥ १६ ॥ इनको जन्म हुयो अधर्मी के | पण लघूवय के मांइरेलो । सत्संगते जाण पणो कर्यो । मांजी में धर्म रुच्याइलो || ति ॥ १७ ॥ कन्या परण्या यह द्रढ धर्मी की । धर्मी किया बाप माइलो ॥ पर सुख देवण आप संकट सह्यो । तो सुख क्यों नहीं पाइरेलो ॥ तीण ॥ १८ ॥ सुखी होइ घणा ने सुखी कीना । धर्मी ध्यान का लाभ घणालीधारे लो ॥ इण कारण नाम लेइ में बोलया । नर जन्म सफल इण विघारेलो ॥ तिण ॥ १९ ॥ संक्षेप चरित्र सुणी जिनदासको || घणा जणा हर्षायारेलो || भेद भाव जाणी पुण्यंवत का । घणा जणा सरसायारे लो ॥ ति ॥ २० ॥ सम् भावेनिन्दा परसंस्था । तेनर समकिती जाणो रेलो ॥ पंचमीढ | लेकहे आमोलख । होवे गुणवंत बखाणो रेलो ॥ तिण ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा || संजती ऋषि तिण समय । धरता निर्मळध्यान ॥ क्षपक श्रेणि पडिवर्जी । मार्यो मोह सुलतान || १ ॥ ज्ञानदर्श चारित्र ढक । तीनों दिया क्षपाय || आप्रतिहत पुर्णविमळ । केवल ज्ञान जद पाय ॥ २ ॥ धुंधवीं बाजी गगनमें । देवकरे जयकार ॥ रचना देखी सह सभा । पामी हर्ष अपार ॥ ३ ॥ केवली सुर नर वृंदमें | वंदे गुरुके पाय ॥ करग्राह तत्क्षिण गु
जि० सु
खण्ड ४
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