Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 112
________________ जि० सु० ५४ | दास || आडा फिरी चरणे नमी । यत्नाए करे प्रकाश ॥ २ ॥ यह छेउं अज्ञानी जन । जाणे नहीं धर्म भेद ॥ दीन बंधव तिणरे कहे । हम ने मतदो खेद ॥ ३ ॥ महा पुण्यो दय रण विषे । कल्पवृक्ष फल्यो आय ॥ वेहरायविन आपने । जावा देस्या नाय ॥ ४ ॥ आप कल्प जैसो हुवे । तो वेहरीजो दयाल ॥ क्षिणेक सुस्ताइये सुनी स्थंभ्या ते काल|| ५ ॥ ७ ॥ ढाल ८ मी ॥ गोपचंद लडका ॥ यह ॥ जे धर्म रंगीला | लावो लेवे जी अवसर पाय के | आं ॥ जसोधर मुनीवर कने राखी । वसुधर सवार ॥ छेउ मंत्री पासे आइ । नरमी कर उचार हो ॥ जे ॥ १ ॥ अनंत पुण्य सजोगे भाइ । वनमें वण्यो सुजोग || अपूर्व अवसर मती गमावो । फसी कर्म के रोग हो ॥ जे ॥ २ ॥ उग्र तपस्वी महा वृतधारी । तनकी ममता टारी । वेपरवाइ निर्वद्य भिक्षा । लेवे यह अणगारी हो ॥ जे ॥ ६ ॥ सहजे निपनी अपणे रसोइ । थोडी भिक्षा दीजे ॥ इण भव पर भवे सुखीया हे से । उत्तम लावो लीजे हो ॥ जे ॥ ४ ॥ इम बहू विध तिणने समजाया । माने नही लगार ॥ भारी कर्मा जीवडास ते । किम निप जावे सार हो । जे ॥ ५ ॥ वमुधर कहे भाइ हम पांतीको । कहाडी दो तुम अहार ।। करस्या हम इच्छा प्रमाणे । किस्यो तुमस्यूं विवहार हो | जे || ६ || चौथो अंस लीधो तिणमें से । अने ते धोवण पाणी ॥ खन्ड ४ ५४

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