Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
View full book text
________________
जि सु
४९
इत उत पूंछता फिरे। तब जिनदास पुकार ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ लेगया पीछे बाडामे | कहे दे खाडूं नार । पहिला उतपत कहो थांयरी । ते सुण शरम्या अपार ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ छेउ जिनदास का मुख भणी । देखे वारंवार ॥ दीसे लघु बन्धव सारीखे । पण ए श्रेष्टी सिरदार ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ शरम्या घणा केवे नहीं । रह्या मन में मुरजाय ॥ नरमाइ कहे हम नार नि । शिघ्र देवो बताय ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ पग प्रणमी जिनदास कहे । हूं जिनदास तुम भ्रात ॥ थोडा दिन में भूली गया । किहां मात ने तात ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ नयनाभूत तीनों हू । कहे अवगुणी हम तीन ॥ तुमको दुःख दीयो घणो । तुम ठेट थी प्रवीन ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ तुम वियोगे मात तात जी । मर्या तिणहीज वार ॥ धन सहू चोर हरी गया । इम हुआ लाचार ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ वियोग जाणी मावित्र को । नेणा छूटो नीर ॥ उपाय कोया सुख कारणे । थया ते दुःख धीर ॥ पुण्य ॥ १० ॥ मात तात कृपा थकी । और आप पसाय ॥ ए ऋद्धि सुख पामीयो । भोजाइ जी घर मांय ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ अबी ज्यादा बात करण को । भाइ अवसर नाय ॥ इहां से तीन कोस गामडो । तिहां मीठी माजी रहाय ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ तिहां जाइ छेउं रहो । कागद दीजो मोय ॥ सामे आस्यूं ठाठ | पाटथी । जिम शोभा जग होय ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ जीमाइ लपत किया । दीयो घणो
1
खण्ड ४
४९

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122