Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 100
________________ जीसु. दया लाइ ॥ पुण्य ॥ ७॥ दासी पासे आहार मंगाइ । तिणने जी माइ॥ कहे कमी खण्ड । कुछ नहीं इण घर में । धापी जीमो वाइ ॥ पुण्य ॥ ८॥ हीडोले बेठी जा सुगुणी । चिन्ते मन माइ ॥ स्वपन प्रमाणे बात वणी पण । यह दुःखी कुण आइ ॥ पुण्य ॥९॥ बोली सूर्त जेठाणी सरखी । पण ते किम थाइ ॥ टोटो नहीं सासरा में किंचित । ए। LIदुःख किम पाइ ॥ पुण्य ॥ १० ॥ तीनी जीमती सुगुणी सामे । जोवे टुक लाइ ॥ बोली चाली रूपने लटको । देराणी सो बाइ ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ छानी बातां करती देखी। सुगणी पास आइ ॥ मुज देखी किसी बात करो । कहो जे तुम मन मांइ ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ ते नरमीने नेणा नीर लाइ । इणपर दरसाइ ॥ भाग्यवती देराणी म्हाणी। होती तुम सांइ ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ फिर सुगुणी पूछे तिण सेती । ते किहां हिवणांइ ॥ तीनो ४८ कहे हम पापणी दुःख थी। गया प्रदेश मांइ ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ तेतो कोडी साथ न लेगया । हीणा भाग्य म्हाणाइ ॥ तिण पाछल सह धन गयो। ह्मणी यह दीशा थाइ ॥K पुण्य ॥ १५ तास वियोगे सासू सुसरा । मरगया धस्काइ ॥ इम सुणी सुगुणी के नेणा। पाणी वरषाइ ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ तीनों नारी देख ए रचन ॥ निश्चय मन थाइ ॥ यह सेठाणी अपणी देराणी।वै मन इण मांइ ॥ पुण्य ॥ १७॥ सुगुणी तक्षिण पारे लागी।

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