Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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इहां । छांया छे सुखकार ॥ ४ ॥ कोइ काम कर ग्राम में। लास्या खान ने पान ॥ अठेइ । आ जीमस्यां । तुम मत छोड जो स्थान ॥ ५॥ इम कही तीनी गया । नायाँ चिन्ते । मन ॥ निवरी आंपा बेठी इहां । किरयो करां यतन्न ॥ ६॥ कोइ काम भोला वइ.
तो करी मेला अन्न ॥ हिवे सज्जन मेलो हुवे । ते सुणी जो सहू जन ॥ ७ ॥ ७ ॥ ढाल || तीसरी ॥ कुमार अभय बुद्धनो भंडारी ॥ यह ॥ पुण्यवंत की संगत सुख दाइ । बच
न पार पहोंचोव पुण्य वंत, कोइ वक्त भाइ ॥ ७ ॥ तिण अवसर तिणही हवेलीमे । अ गरणी औछब थाइ ॥ न्यात जिमावा मेंदो करवा । गहुंने पीसाइ ॥ पुण्य ॥ १॥ पीसण | हारीको जोग नहीं। तवादासी कहे आइ ॥ सुगणी गोखथी जोवे बजार । तीनों देखाइ॥ पुण्य ॥ २ ॥ दासीने भेजी पूछ इणन । देदाम जेचहाइ ॥ कम करसो पूछो जाइ तिणने ।
। तेसुण खुशी थाइ ॥ पुण्य ॥ ३॥ उपरला पोसण बेठाइ । भाज्या गहू तांइ॥ घही शी Hघ खिंचे नहीं तिणसे । थाकने निवलाइ ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सुगणी ऊठ तिण पासे आइ। N जोवे घट्टी ताइ ॥ वार घणीने पास्यो थोडो । देखी रीसाइ ॥ पुण्. ॥ ५॥ ठोकर मारी
कह दबाकर। लसो दमडाइ ॥ काम अधरो मेली जावा । हे मनमां काइ ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ कर जोडी रमाइ तानी । कहे करो क्षम्याइ । तीन दिनाकी हम छां भूखा । सुगुणी।

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