Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 91
________________ किस्यो करूं जी । धन घणो मुज घर मांय । ॥ धर्म ॥ ४ ॥ जबर दस्ते ते देइ मांजी ने जी । चाल्या कर प्रणाम || आया पोलासपुर नगरी के विषे जी । रहवाने जोवेजा ठा ॥ धर्म ॥ ५ ॥ तिण अवसर तिण नगरी ने बिषे जी । धनेंद्र सेठ सिरदार ॥ अशुभ कर्मोदय दीवालो काहाडीयो जी । लिल्लाम होवे तस माल ॥ धर्म ॥ ६ ॥ हवेली पंच खन्डी मध्य बाजारमे जी । निरारंभी सारी ते देख || ऊभा रही ने मोल पूछे तदाजी | कामे ती कहे तस पेख || धर्म ॥ ७ ॥ वसु कोटी धन दे जो इहां राज ने जी । तिणने मकान ने माल || सहू संपत ए देवे सेठ की जी। जिनदास सुणी एह सवाल || धर्म ॥ ८ ॥ आठ रतन कहाड दीना सचीवने जी । लीनो पट्टो लिखाय ॥ अखूट द्रव्ये देख परदेशी सेठपे जी । अश्चर्य पाया सवाय ॥ धर्म ॥ ९ ॥ सर्व सामग्री | सहित सीधो मिल्यो जी । सुखदा मकान पुण्य जोग || जिम जावे कोइ पोताका घर विषे जी । तिम रह्या तिहां सुख भोग ॥ धर्म ॥ १० ॥ गादी तकीया लग्या या दुकान ये जी । तिहां विराज्या आय । मुनीम गुमस्ता रख्या पहिली तणाजी । साल करी ने ॥ वाय ॥ धर्म ॥ ११ ॥ फक्त पलट्यो एक नाम दुकान को जी । और सहू पुर्बळी पेर ॥ धर्म नीती संच काम चलावीयो जी । धनकी कमी नहीं घेर ॥ धर्म ॥ १२ ॥ चौकस

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