Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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निर्लज्ज की। सूत्तो वणी नबाव ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ पाट छिद्र जोवे तदा । मां कोइ नदे वाय ॥ वशिखुल्ली देखी लारली । वेमन मांही आय ॥ ९ ॥ उखाडी कींवाड मायें, गयां । जोवे सेजउपर ॥ भूषण वस्त्र नाणा धर्या । चिन्ते गया किणर ॥ पुण्य ॥ १० ॥ खिडकी ने जोइ डोरिबांधी। गया इहां थी उतर ॥ तीनों जणा खुशी हुवा | टाल्यो सर्व फीकर ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ धनभूषण सब लेय ने । आयापिता के पास ॥ कहे सेजे आप कटी गयो । संभालो ए धनरास ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ धस्की पूछे सेठ स्युं हुवो क्यों नही आयो नान्यो एथ ॥ ते कहे तेतो दोइ जणा । भागी गया केथ ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ इम सुण सेठाणी सेठजी । पड्या धरणीये मुरछाय ॥ जलविना जलचर पेर । तडफीम) र्या क्षिण मांय ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ छेउं जणा इम देखके । घबराया अपार । लास दोइ काहाडी वाहीरे । सहू गहणा उतार ॥ पुण्य ॥ १५॥ कोटडी मांहे न्हाकी करी । दीयो तालो लगाय ॥ लोक, देखावू रूदन करे । परिवार दोडी आय ॥ पुन्य ॥ १६ ॥ पूछे तीनों थी तदा । एका एक थ्यो किम ।। जिनदास पण दीसे नही। कर्यो किसो तुम इम ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ तीनो रोता इम कहे। जिनदास लाडीसाथ ॥ रातरा किहां निकली गया। पत्तो लाग्यो ने ही तास ॥ पुण्य ॥ १८॥ इमज णी डोकरा डोकरी। पडया मुरछा खाय ॥ क्षिणक मांय मरी गया । करां किस्यो उपाय ॥ पुण्य ॥

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