Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 92
________________ जी० स० ४४ कराइ तिहां मुनाराज की जी । सहू साथ वंदन जाय ॥ देशना सुण फिर आइ भोजन के खण्ड ३ कियो जी । इम नित्य धर्म बढाय ॥ धर्म ॥ १३ ॥ चउदे प्रकार की दानकी जे वस्तु जी। सूजती रखे सदा गेह ॥ संत सती भणी उलट प्रणाम थी जी । वेहरावे अधिकार स्नेह ॥धर्म॥१४॥साज सा धर्मीने देइ करीजी। धर्म बृद्धी कराय। उन्नती करे ते जैन धरमा तणाजी । पोषे अनाथ के तांय ॥ धर्म ॥ १५ ॥धनवंतानेवली दानेश्वरीजी । दानेकीती फेलाय ॥मानीता हूया ग्राम ने राजमेजः । दिल उदार पसाय ॥ धर्म ॥ १६ ॥ पं. च इन्द्री सुख पुण्य थी भोगवेजी । एकदा सुख सेज मांय ॥ सुगणी सूती स्वन अबलोकीयोजी। उपनो पुण्यवंत आय ॥ धर्म ॥ ११ ॥ तीजे मांसे डोहलो उपनाजी IN कीजे धर्म ने दान ॥ सात में मासे रूढ़ी जक्त कीजी । अग्रणी ओछव मंडाण ॥ धर्म ॥ १८॥ चउविध अहार नित्य सा धर्मानजी । अनाथ भणी जीमाय ॥ दुःखीया पोषे तो ४४ कुटंबनेजी। दिन २ सूकृत्य बढाय ॥ धर्म ॥ १९ ॥ जे धर्म पसाय ते सुख पाइयाजीAN तेहने क्योंनी दीपाय ॥ उत्तम लक्षणे उत्तम वृतता जी । तेही जगमें पुजाय ॥ धर्म ॥ २० ॥ तीसरे खन्डे ढाल दशमी विष जी । धर्मी पाया आराम ॥ अमोलख ऋषि कह। सणो भवी जना जो । करे धर्म उन्नती काम ॥ धर्म ॥ २१॥ ७ ॥ तृतीय खन्ड सारांस

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