Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 89
________________ छे लगारेजी । किम थे आया माजी लारे ॥ धर्मी ॥ १५ ॥ वृधिका तत्र रत्न बतायो जी । एमुज आंगण में पायोजी । तुम सूता हूंता ते ठायो ॥ धर्मी ॥ १६ ॥ सुगुणी कं कर गांठ संभ लीजी । सहू झग मग रत्न ने भालीजी । कहे पति भणी तात्काली ॥ धर्मी ॥ १७ ॥ धर्म पसाय जोवो श्वामी जी । हुया कंकर का रत्न नामीजी || पति जोवे अ श्चर्य पामी ॥ धर्म ॥ १८ ॥ दोले पन्दरे गिज्या ते साराजी । कहे मांजीसे रत्न यहाम्हारा जी । भुल थी रहीं गया था लारा ॥ धर्मी ॥ १९ ॥ तेदियारत्न तब माजी जो । दंपजी थषा अति राजी जी । अब कमी रही कछू नाजी ॥ धर्मी ॥ २० ॥ द्रव्य तिहां सर्व थावेजी ।" वली शहर ए नेडो आवेजी । अब क्यों ते तन ने सतावे । धर्मी ॥ २१ ॥ माजी अवभे | तिहां ठाडीजी। पूछे जिनदास मिलसी को गाडीजी । हमने देवे शेहर पहोंचाडी ॥ ध मी ॥ २२ ॥ धन देखी डोसा के जी । भाइ हम घर क्यों नहीं रेवेजी । चाहाने सो क्यों नहीं लेवे ॥ धर्मी ॥ २१ ॥ विंते पारणो करीने जास्यांजी । विडां तो इहां सुख पास्यां जी । माजी ने साता उपज्ञास्यां ॥ धर्मी ॥ २४ ॥ इम विचारी तत्क्षण फिरीया। जी। मोठी मांजी के घर उतरीया जी। अंतरका कलेजा ठरीया ॥ धर्मी ॥ २५ ॥ पारणा, को साज मंगायो जी । माजी दियो जो तस वायोजी । सुगणी तब अहार निपायो ||

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