Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 87
________________ पारा ॥ धर्म पसाये सह सुख पाया । धर्म बधायो ते वारा ॥ देखो ॥ २० ॥ अवसरे । दिक्षाले स्वर्ग पहुंता । वरसे आगे शिवदारा ॥ ढाल आठमी तीजा खंडकी । अमोल करी उचारा ॥ देखो ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ जिनदास कहे सुगुणीने । इम सुख दुःखे: एक सार ॥ धर्म करणी करे जिका । ते पामे सुख सार ॥ १॥ मीठी माजी सुण कथा । हर्षायो घणो चित ॥ आहा धर्मी जोडलो । छो तुम पर्म पवित ॥ २ ॥ मधुर । यणे जिनदास तब । पूछे माजी से एम ॥ है जी शेहर कोइ ढूंकडो । जिहां पावां हम। सम ॥३॥ डोसी कहे तीन कोस पर । पोलास पुर भभिराम ॥ लोक सहू सुखीया पसे । धर्मी उदार प्रणाम ॥४॥इम सुणी शांती हड । निज २ स्थाने सोय ॥ निद्रा माइ तत् क्षिणे । हिवे पुण्य प्रगट होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवमी ॥ जात्रिडा जाला निन्याणू करीयेरे॥यह०॥ धर्मी जन धर्म थकी सुख पावे जी।दुःख संकट सहू विर लावे ॥ धर्मी० ॥ ७० ॥ तिण अवसर अंतलिख मांइ जी । कवड यक्ष देवी संग | आकाश जाइ जी । समद्रष्टी धर्मी ने सुख दाइ ॥ धर्मी ॥ १ ॥ मीठी माजी का घर पर आपो जी। तब योन स्थंभी तिहां रहायो जी । तब असुर दिल घबरायो ॥ धर्मी ॥ २॥k उही नाण लगाइ देखे जी । धर्मी दंपती सूता पेखे जी । पडया संकटे तपेतन सेके ॥2 २ बीमा

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