Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
View full book text
________________
म
रणो तो चालो इग वेला । नहीं फिर जोर नम्हारा ॥ चोकस कर नृप पीछा लेजासी।
खण्ड ३ लिन जान न देसी वारा ॥ देखो ॥ ११ ॥ नायक शिघ्र श्रेय अश्व मंगायो । तिण पर । हूया सवारा ॥ वायू वेग तेह ने दोडायो । साथ हुया परिवारा ॥ देखो ॥ १२ ॥ दि-N नोदय कोइ मोटा शहरमे। किया सहू उतारा ॥ गज घोडा रथ पायक खरीया । खरची द्रव्य अपारा॥ देखो ॥ १३ ॥ बह मोल वस्त्रा भूषण पहराया । सागेकीधा नल कुँवारा॥ सह परिवारे परवरी चाल्या । आगे मेल्या हलकारा ॥ देखो ॥ १४ ॥ सिंहस्थ सुण आणंद पाया। कराइ शैन्या तैयारा ॥ गावत बाजत सामें आया। नर नारी मि-18 ल्या अपारा ॥ देखो ॥ १५ ॥ रूप संपदा देख जमाइ की। हर्ष्या सहू नर नारा ॥ शुभ महूर्त शुभ शुकन लेइने । पेठा नगर मझारा ॥ देखो ॥ १६ ॥ मोटो मेहल । दियो उतरण को । किया वंदो वस्त सारा ॥ शुभ लग्ने कन्या परणाइ ॥ थाट पाट सिरदारा ॥ देवो ॥ १७॥ अर्थ राज और ऋद्वि घणी दीवी । कन्या दान मझारा॥ पंच इन्द्रीका सुव भोगावे । मिलीया चिंतत सारा ॥ देखो ॥ १८ ॥ एकदा शैन्य ले। गया कुस्थल पुर । मिलिया सहू परिवार ॥ सच्चा अर्ध राजा हूवा सुख दत्त । सुण पाया अश्चर्य सारा ॥ देखो ॥ १९ ॥ मरती वक्त सहू राज सिंहल नृप । दीधो हर्ष अ-d

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122