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हाथी
ले तुरी नचाता हो मुलकात जन अधराजवी । फीले देख्यो नायक पास ॥ राय ॥ १४ Mनायक मुजारो करने हो कांइ हर्ष भावे कही सहू चरी । दंती भेज्यो आप काज ॥ अध राज तब बाल हा वण तोल पाडा एहवा । किसा करणा फिर घणाज ॥ राय ॥ १५॥ अब कहो किहां जावो हो । तव नायक कहे सिंहल द्विपे। छ । पारा पुर अभीराम। ॥ अर्थ राज कहे वहां का हो नृप मुज पिताका भित्र छ। तस देजो भेट ए नाम ॥ राय ॥ १६ ॥ विणजरो सीधाया हो कांइ आयो सिंहल द्विप मे। हाथी ते नृप भेट दीध ॥ रूप बुद्ध बल तांइ हो बखाणाइ घणी अर्ध राजकी। कांइ भूपत ध्यान में लीध
राय ॥ १७॥ प्रछे मंत्री तांइ हो यह कण अर्ध राजा की जीये। प्रधान कहे ओलखी नाय ॥ विन पेछाणे ऐसो हो कुण मेले मयंगल मोट को। बहु मोल गहणा पेहराय । ॥ राय ॥ १८॥ नायक पण घणी कीनी हो कांड परसंस्था अर्ध राज की ॥ कोहदीसे।
छ भाग्यवंत ॥ पद्मणी छे मुज कन्या हो कांड रूप कला गुण आगली। जो जोगी जोड N/मीलंत ॥राय ॥ १९ तो तेह ने परणाइ हो जमाइ करू घर माहेरे । वली अर्धराज।।
तस देय ॥ विणजारा ने बुलाइ हो कांइ पूछे वय रूप गुण कहो। जिम होवे निसंदेय । ॥राय ॥ २० ॥ नायक कहे वय बाले हो रसाले रूप सुहामणो । मोहन गारो राय ॥