Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 82
________________ खण्ड ३ जि० स०ऐसा अनेक ॥ फेरण हारो मेंइहो कांइ बर्षे वारी आवे नही । नित्य लावू छू एकेका राय ॥ ७ ॥अब कहो तुम किहां जासो हो प्रकाशो तब नायक कहे । जास्यूं भृगूकच्छ । ३९ महाराज ॥तिहां छे बन्धव म्हाराहो कांइ प्यारा मामाका डीकरा । राज से मिलजो त हांज ॥ राय ॥ ८॥ए अश्व भेट में दीजोहो कांइ कीजो मुजरो प्रेम थी। पाछा मिल-2 जो इणही ठाम ॥ नायक हर्षित थाइ हो लेजाइ हय यत्ने करी। आयो भृगूकच्छ गाम । ॥ राग ॥ ९ ॥ मिलियो भूपथी जाइहो दर्शाइ प्रीती अर्थ राज की। दीयो अश्व भेट के माय ॥ देखी उत्तम तुरंगोहो बहू मोलाने भूषण भर्यो । दिलमें अति हर्षाय ॥१०॥ । सचीव बुलाइ पूछे हो कुण प्यारा यह अर्थ राजवी । ते कहे मुज औलख नाय ॥ अति घणो शरमायो हो दबायो तिहां प्रधानने। फिर नायक ते फरमाय ॥ राय ॥ ११॥ हांसल माफ तुमारो हो सहू डालो माल जे राज में | लेवो टका थे इच्छ चार ॥ पाछ जातामिल जोहो । कहजो जुहार अर्थ राज को । वली भेट ले जाजो लार ॥ राय ॥ १२ ॥ मयंगल श्रेय भुटगार्यो हो । जरी झूल । रत्न की घूघरी । हेम होदो रत्न जडाब अर्ध राज को दीजोहो घणो प्रेम जणाजो माहेरो। फिर आजो इण ठाव ॥ राय ॥ १३ ॥ तेह गज गृही हर्षायो हो काइ फिर आयो कुस्थल पुरे । ऊभो तिहाइ रहाय ॥ तेन । - - --

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