Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 79
________________ सुबुद्ध सुखदत्त ने तब आइ। सुणी कहे कणीया पुर राइ हो राज ॥ धर्मी काका महारे। लागे । तुम तिण पासे जाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ ९॥ अडचण कुष्ट तणी तस सुणी में। अति दुःख मुजने थावे हो राज ॥ फुरसत नहीं मुज ने इहा क्षिण भर । मिलवा मन । वणो उपावे हो राज ॥ पुण्य ॥ १० ॥ औषधी हूं तो राखू पासे । जो कोइ मिल जावे। जोगो हो राज । आज मुभाग्ये थे आइ मिलीया । करो इत्तो काम थां जोगो हो राज ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ बावनो चंदन ए लेजावो । इन को दांतण करावो हो राज ॥ कांइ । घसीने अंग लगावो । सह रोग ने तुर्त गमावो हो राज ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ घणी २ सुख । शान्ती पूछ जो । लुली २ कीजो जवारो हो राज ॥ तात माँ पछे पल नहीं तस । इम किम मन उतार्यों हो राज ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ इहां मत पूछ जो महारी हकीगत ।।। नहीं तो दुःख थें पासो हो राज ॥ इणहीज वक्ते इणहीज जागे । मिलस्यूं थे जब आसो हो राज ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ इत्यादी सह सिखामण देइ । घोडो आगे चलायो हो । राज ॥ नायक गुण देखी हर्षाया। मोटा होइ नरम गुण सवायो हो राज ॥ पुण्य ॥ १५॥ इम चिंतब तो टांडा में आयो । मूव्यो मिश्रू थी मंडायो हो राज ॥ अम्बर का) डावा साहें राख्यो । कीधो जतन सवायो हो राज ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ वृषभ सजी ने

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