Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 78
________________ ३७ तिण अवसर लख्खी विगजारो । वो तो उतर्यो ग्राम ने बारो हो राज || सांज समय | आयो नगर जोवाने । तब ऊभा दीठा मनुष्य अपारो हो राज || पुण्य ॥ १ ॥ वृद्ध पुरुष | थी पूछे नरमाइ । कहो साची वात ए भाइ हो लाल || किम मिल ऊभा इत्ता नर नारी | दोनो वाजू टट्टी बन्धाइ हो राज || पुण्य ॥ २ ॥ सो कहे अबी आसी अर्ध राजा । अश्व खेलता सज साजा हो राज || मुजरो करण ने सहू ए ऊभा । जोवण छटा नवी आजा हो राज || पुण्य || ३ || विणजारो सुण अश्चर्य पायो । घणा जोया आखा रा| याहो राज || आधाराजा तो आजही सुणीया । देखण इत्ता नर मोहवाया हो राज || ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ तिण समय नळ कुँबर सा होइ । अर्ध राय अश्व नचाता हो राज || मध्या बजार हुइने निकल्या । सहू नर सीस नमाता हो राज || पुण्य ॥ ५ ॥ दोइकर | जोडी तेही नीचो नमे । मुजरो करे प्रण में हो राज || आया लख्खी विण जारा पासे । ते पण लुली नसे हो राज || पुण्य ॥ ३ ॥ नवो मनुष्य देखी पूछता । तुम कुण किहां रेवंता होराज ॥ किहां थी आया किहां जावो । किसो काज करता हो राज ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ देखी नर मांइ ते हर्षाइ । कहे श्वामी हूं विणजारो हो राज ॥ भद्दल पुर थकी हां आयो । कणीया पुर जावा विचारो हो राज || पुण्य ॥ ८ ॥ जि०सु० खण्ड ३ ३७

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