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आया राय घुड शाल ॥ आनो देइ हो अश्व भाडे लीयो । साथे थयो अश्व पाल ।
खण्ड ३ जि० सु० ।। सुणी ॥ १९ ॥ अक्कड धर ने हो वेठो अश्वपर । सहू साज सजाय ॥ पूर्वं पेरे हो
आया बजार में। सहू जोवे नीघा लगाय॥ सुणी ॥२०॥ एकुण २ हो अर्ध राजा जिसा ।। रूप सिणगार सोहंत ॥ सुख दत्त नामज हो सहू भूली गया । अर्ध राज थपंत ॥ । सुणी ॥ २१ ॥ बाल पणा थी हो एहीज काम में । भयो घणो हुशार ॥ नचावे कुदा ।
वे हो थडी करावइ । लोक माह्या अपार ॥ सुणी ॥ २२ ॥ घडी भर फिरके हो माल धणी भणी । भोलावी ने दियो माल ॥ सुख थी सूतो हो आइ निज घरे । नित्य प्रत करे इम ख्याल ॥ सुणी ॥ २३ ॥ अश्व फेरण की हो जोइ चतुराइ ने । घणा मालक तु । खार ॥ अग्राह करीने हो आपे नित्य प्रते । नित्य नवौतुरी श्रेय कार ॥ सुणी ॥ २४ ॥ कोई दे वस्त्रहो ग्रहणाकोइ दे।अतर पान दकोइलाय॥ नित्य नवी रीते हो निकल सांजका ।नी ३६ त्य नवी चाल चलाय॥सुणी॥२५॥ लोकसेंदा देखा होदाखे आंगुली। यह है तेहना तुखार है। ॥ वस्त्र ग्रहणा हो यहछे अमुक का । धणी सुण हर्षे अपार ।। सुणी ॥ २६ ॥ मोली लेइ हो आवे शांजका । देइ मूडे मांग्या दाम ॥ खेंच करीने हो लेजावे बहू जणा। धरी महीमा की हाम ॥ सुणी ॥२७॥ नित्य प्रते शांजे होइम बजार में । जमें नर नारी का ठाठ॥
IN/ १ घोडा