Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 73
________________ INमें सांजे आया चाल जी ॥ शंकट अंत सुख ऊपज । इम मनमें करतां ख्याल भवि॥२१॥ प्रयाग नामे खेड में । आया रहवाने पूछे ठामजी ॥ सहू कहे मीठी माजी घरे । थे जाइ लेवो विश्राम ॥ भवि ॥२२॥ आया मीठी माजी घरे । कहे रात। |वण देशो जाग जी ॥ डोकरी देखी हर्षी कहे । बेटा भले पधार्या धन्य भाग ॥k भवि ॥ २३ ॥ यह सहू जागा तुम तणी । सुखे रहो इणमांय जी ॥ जन भक्ती संग चालसी भाइ । बीजो साथ नहीं थाय ॥ भवि ॥२४॥ओटला उपर दंपति । बेटा होइ । खुशाल जी ॥ धर्मथी सुखी होवे ते सुणो आगे । अमोल कही चौंथी ढाल ॥ भावे ॥ २५॥ दुहा ॥ थाक और तपस्या थकी । सुगुणी गइ घबराय ॥ सयनासन तिहां कीयो । प्रतिक्रमण वक्त आय ॥ १॥ जिनदास कहे सावध हूवो । प्रतिक्रमण नित्य । नेम । करो वक्त ए जाय है । सूता हिवणा केम ॥ २ ॥ सुगुणी कहे शक्ती नहीं । जीव । घणो घबराय ॥ पति कहे दुः ख सुख में । धर्म करणों एक साय ॥३॥ तो अर्ध राज। तणी परे । पाम सो सुख श्रेय कार ॥ सुगुणी कहे अर्ध राज कुण । फरमावो विस्तार ॥४॥ नित्य नियम हयां पछे । कहस्यूं रसिक ए बात ॥ सुगुणी शिघ्र नित नेम कर।। कथा सुणन उमगात ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ मी॥ वेकर जोडी हो वंदू भाव स्यु।।यह०॥

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