Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ व तणो सूख चहायजी ॥ आं ॥ आंपा जो इहां थी गया । तो खुशी होशी सह साथजी॥ अपणा पुण्य अपणे संगे । वली सहायक छे जग नाथ ॥ भवि ॥ २॥ प्रदेश में जाइरेवशां । करस्यां स्वधर्मी की सेवजी ॥ क्लेश सह मिट जावसी । तीनोंहे पिताने सुख दे ।। व ॥ भवि ॥ ३ ॥ गेहणा सहू उतारीया । गुप्त धन चौडे दीयो मेल जी ॥ तीन २ वस्त्र राखीया । जावण की सोधे गेल ॥ भवि ॥ ४ ॥ मुख्य दरवाजे मावित्र है। जावान । देसी आपण तांय जी ॥ खिडकी ने बान्धी डोरडी । उतर्या दोनो तास साय ॥ भवि ॥ ५॥ समी राते चालीया । फिरता गली गूंची मांय जी ॥ आया ग्राम के वाहीरे । म *नमाने मार्ग जाय ॥ भवि ॥ ६ ॥ तम जोग सूजे नहीं । कँटा कंकर लागे पाय । जी ॥ अथडावे पत्थर थकी। खाडा में पडे टोंचाय ॥ भवि ॥ ७॥ वनचर केइ चरा - चरकरे । सिंहादी पासे होइ जाय जी ॥ जपता श्री नवकार ने । तेह थी उपसर्ग जरा नथाय ॥ भवि ॥ ८॥ पाछे को डर मनविषे । रखे खबर पड्या कोइ आय जी ॥ पाछा N/ले जासी पकड के । रखे क्लेश में बृद्वी थाय ॥ भवी ॥ ९ ॥ फिकर थी थाक चडयो नही। अरुणोदय थयो ताम जी । गाउ घणा उल्लंघीया । हिवे कीजे नित्य नियम काम ॥ भवि ॥ १०॥ तह तलेदोनों बेठ के । सामायिक लीवी बान्धजी ॥ प्रति क्रमण राइ। १ अधार

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122