Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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खण्ड ३
३४
तणो । कयों चित पञ्चखान विध सानध ॥ भवि ॥ ११ ॥ सगो सम्बन्धी कोनहीं । जेह , जी० म० नथी जीमावे अहार जी ॥ कोडी खरचण संग नहीं । किम मिलसी भुक्त प्रकार ॥
भाव ॥ १२ ॥ सेजेइ निपजतो दिसे । आज अपणे चौथ भक्त तप जी ॥ इम चिंती १ उपवास उपवास पञ्चखीयो। तपे असुभ कर्म जावे खप ॥ भवि ॥ १३ ॥ मोटे रस्ते चालता। कोस दो कोस लेता विश्रामजी ॥ धर्म कथा करे प्रेम थी। सांजे खेडा में कियो मुकाम
भवि ॥ १४ ॥ समायिक प्रतिक्रमणो । करी धर्म ध्यान ध्यायजी ॥ संवर करी. सूता सुखे । जागी राइ प्रतिक्रमण ठाय ॥ भवि ॥ १५ ॥ छठे आवश्य के चिंतवे । आज| न दीस धान जोगजी ॥ छठ तप सहजेही नपाजे। एह रुडो मिल्यो छे जोग ॥ भवि ॥ |१६ ॥ बेलो करी आगे चल्या । क्षुद्याथी चाल्यो नहीं जायजी ॥ छांयां मे वीसामो ले|वता । राते रह्या गमडामें आय ॥ भवि ॥ १७ ॥ तीजे दिन अठम कियो । पण चलता-KIनी ऊठे पितजी ॥ भमल आवे वेठे तिहां । चाले शांत हुयां थी चित॥भवि॥ १८ ॥ सरीता शीतल छांयडी । निहाली लियो विश्राम जी ॥ चिंते हिवे अंगुलीबेडे । याद न रहे। प्रमेष्टी नाम ॥ भवो ॥ १९ ॥ स्मरण रखवा जापको । लिया कंकर बीणी तेवार जी॥ अष्टोतरसत पोते गृह्या । पतीने दीय दोपचास चार ॥ भवि ॥ २० ॥ थोडे अंतर ग्राम

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