Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 69
________________ नारी ॥ ८॥ सुगुणी हाथ जोडी कहे । क्षमा करो मुज मांइ जी वाइ ॥ सोगनदी तो । | स्वपनो कह्यो । कलह करणो नाइ जी बाइ ॥ नारी ॥९॥ तानों कहे वस चुप रहे । तुजने घणी गुमराइ री बाइ ॥ धर्मण बजे ढोंग करे घणा । सासु सुसराने भरमाइरी बाइ॥ नारी ॥ १० ॥ इन लडाइ सांभली । लोक घणा मिल्या आइ हो बाइ । सेठ अने तीनों |बंधवा । आया तिहां दोड्याइ हो भाइ ॥ नारी ॥ ११ ॥ सुगुणी मन शरमी घणी। झाड पीछे छिप बेठी हो भाइ ॥ तीनो कंकाली भडझी लाय ज्यू । बोलेझाला देइ सेंठी हो । भाइ ॥ नारी ॥ १२ ॥ सुलरा घणी समजावइ । तीनो बात नहीं माने हो भाइ॥ ठोकर मारण हारीने । भेली न रहां कहां थानेजी वाइ ॥ नारी ॥ १३॥ जिनदास तब आवीया । लडाइ देख शरमाया नी भाइ ॥ दोष जाणी निज नारीको । रोश घणो मन लाया - जी भाइ ॥ १४ ॥ डोकरो कहे घर चालने । करस्यं धन की पांती हो वाइ ॥ जुदा करस्यू तुम भणी । इम समजाइ बहू भांती जी भाइ ॥ नारी ॥ १५ ॥ जेहर हुयो सहजीम वो। श्वान भणी बच्यो डाली हो भाइ ॥ आया तवहीं निज घरे। तीनों प्रस |तिज्ञा झाली हो भाइ ॥ नारी ॥ १६ ॥ जुदा होवां तो जीम वो। इम कही दारे वै. सी हो भाइ ॥ सोगन खावे सब जणा । तो घर में देवा पैसी हो भाइ ॥ नारी ॥ युक्ता

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