Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 68
________________ खण्ड ३ जी० सु ह करस्यो मात ॥ ४ ॥ तीनों कहे सम थायरी । जो हम करां कलेश ॥ सोगन तुज भर तारका । जो श्वपन ना कहेश ॥५॥ ढाल ३ तीसरी ॥ पुज्यजी पधारो हो नगरी ह तणी ॥ यह० ॥ नारी जात कलेह कारणी । रंग माहें करे भंग हो भाइ ॥ जो इण थी। वचके रहे। उनका सुख अभंग हो भाइ ॥ नारी ॥ १ ॥ सुगणी सोगन सांभला । मनमाहे मुर जाणी हो भाई ॥ कहे वाइजी क्षमा राखजो । हूं कहू श्वपन की कहाणी जी बा इ॥ नारी ॥ २ ॥ हम दोनुं गया पर देशमें । धर्म पसाये सुख पायाजी बाइ ॥ हवेली मोटी मे रेवता । अगरणी औछब मंडाया जी बाई ॥ नारी ॥३॥ जीमे हम घर सहूजगा । दो पीसावण काम जी बाइ ॥जोता था जवयेमिली। अशक्त भूखी ताम हो बा. इ॥ नारी ॥ ४ ॥ दाम देइ पासण भणी । बेठाइ तुम तांइ जी बाइ ॥ पण घडी खींचो नहीं। मुजने रीस तव आइ जी बाइ ॥ नारी ॥ ५॥ ठोकर मारी अजाणमें। फिर पक्का न जीमाया जी वाइ ॥ ऐलो श्वपन आज में लयो । तेसो तुमने सुणाया जी बाइ ॥ ना Aरी ॥ ६॥ इम तीनों केकाली सांभली । क्रोधे धम २ थाइ जी बाइ ॥ विफरी हुइ। भूतणी जीसी । मोटे साद अरडाय हो भाइ ॥ नारी ॥ ७ ॥ मोटा घरकी होय के । घणी गइ अकडाइ हो बाइ ॥ ठोकर मारण हम भणी । घरमें तूंहीज आइ जी बाइ ॥

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