Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 67
________________ १ झ म्हारे घर बार | दारिद्री दोन्या ने जाणी दीना ललकार || सुणो ॥ २५ ॥ ऐंठ बाडो न्हाख्यो में उकरडे जाय || भूखा मरता दोइ पडया तिणपर आय ॥ सुणो ॥ २६ ॥ चूगी ने खाया सहू तिण माहेला कण । इणपरे बाइ मेंतो देख्यो स्वपण ॥ सुणो ॥ २७ ॥ तीनो सुगणी ने जोवे द्रष्ट लगाय । किंचित रीस तस आइ न जणाय ॥ सुणो ॥ २८ ॥ तीनी कहे राणी जी खमावां तुज । साची सहू बात कही राते जे सुज ॥ सुणो ॥ २९ ॥ सुगुणी कहे रीस तणों इण में किस्मो काम । स्वपन की बात झूटी जाणीजे तसाम || सु ॥ ३० ॥ अनंत भव भ्रमण में किया ऐसा कर्म । साची थांकी बात सहू किसी इण में शर्म ॥ सुणो ॥ ३१ ॥ इत्यादी ज्ञान देइ उपजायो संतोष । ज्ञान को तो सार थेइ लाणों नहीं रोश || सुण ॥ ३२ ॥ धन्य क्षमा वंत भणी कहे इम अमोल । ढाल बीजी यत्न करो क्षमारल तोल ॥ मुणो ॥ ३३ ॥ ७ ॥ दुहा | सुगुणी ने तीनों कहे । बाइ तू बोले नाय । थने पण आयो हसे । स्वपन ते देवो सुणाय ॥ १ ॥ सुगुणी तब चित चिंतवे | स्वपनो आयो मोय ॥ जो अबी प्रगट करूं । तो कलेह निश्चय होय ॥ २ ॥ ना | कहतां अलिके लगे । तब रही मून धार । तीनों कहे हम भोली छां । श्वपन दिया उचा र ॥ ३ ॥ मनमेली तूं कपटणी । कहे न मन की बात || सुगुणी कहे श्वपन क । कले

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