Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 66
________________ नि० सु० एम । बाइ तूंतो बोले नहीं करे नित्य नेम ॥ सुणो ॥ ११ ॥ हमेजा सरोवर पर करस्यां । खण्ड ३ अंगोल । सुगणी कहे माला फेरी बोलस्यूंहूं बोल ॥सुणो ॥ १२ ॥ इतरे यत्ना थी करो आपस में बात । इम कही मनमें ते धर्म ध्यान ध्भात ॥ सुणो ॥ १३ ॥ क्रोध उपजावा तीनो करे संकेत । बडी कहे बात कर्या कलेह होसी एत ॥ सुणो ॥ १४ ॥ सुगणी कहे ।। IN यतना थी सुखे करो बात । बात मांहे कलेहको कारण न दिखात ॥ सुणो ॥ १५॥ बड़ी कहे आज बाइ सुपनो आयो मुज । आंपा चारी जुदा हुवा धन बांटी गुज ॥सुणो॥ १६ ॥ देवरजीने तो बाइ कमांतां न आय । धन खोइ थोडा दिन भिख्यारी ए थाय। ॥ सुणो ॥ १७ ॥ हम धर व्याव मंडयो तेडया सहू साथ । देवर देराणी विन बोला। | यांइ आत ॥ सुणो ॥ १८॥ गरीब जाणीने मट्टी वरतन मांय । बच्यो कुच्यो अन्न याने |दियो जीमाय ॥ सुणो॥ १९ ॥ देखे सुगुणी के सामे नहीं आइ रीस । दूजी कहे अब । म्हारी कई बीतीस ॥सुणो॥२०॥ इमहीज मुज बाइ स्वपनआयो रात। फरक इतरोइ में तो न्हाख्यो उपर्यो भात ॥ सुणो ॥ २१ ॥ तिण ने ठीकरा मांही देवरजी लेय । देराणी * के साथ जील्या सुगला एय ॥ सुणो ॥ २२ ॥ तोइ पण सुगुणी ने रीस नहीं आय ॥ चीडाया सुगु गी ने तब तीजी बोली वाय ॥ सुणो ॥ २४ ॥ फाटा कपडा पेहर आया ।

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