Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ जी० स० खण्ड ३ किया के वाहिर आया ॥ सुख करी फासुक जागा में। माल उपकरण ठाया ॥ धर्मी ॥ १८ ॥ सुगणी तत्क्षिण गाडीसे उतरी । पूंजणी लेइ हाथो ॥ भोजन निपजावण जागा पूंजी । लस थावर टली घातो ॥ धर्मी ॥ १९ ॥ यत्ना थी पाणी छाणी ने । आटो दाल सब | जोया ॥ छाणा लकडी पूंज जमाया। ओर यत्न सह चोयो ॥ धर्मी ॥ २० ॥ जेठाण्या धंदामें लागी । आप ने फुरसत जाणी ॥ चिन्ते घडी में रसोइ थासी । हूं स्यूं करूं - कमाणी ॥ धर्मी ॥ २१ एकांत जा करूं सामायिक । धर्म उपकारण लेइ ॥ झाड नीचे समता धर वेठी । नित्य नियम करेइ ॥धर्मी॥२२॥ धर्मी जन अवसर पामी ने । धर्म | तणो लाभ लेवे ॥ तृतीय खन्डकी प्रथम ढाल ए। ऋषि अमोलक केवे ॥ धर्मी ॥ | २३ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ धर्म जय ऋपि तिणस में । चिन्ते मुनी संघात ॥ लोक गया गाम वाहिरे । आपण आहार किम पात ॥१॥ चालो ग्राम के वाहिरे । करशा कुछ उपदेश ॥ अहार पाणी कर आवस्या । चाल्या संत यत्नेश ॥ २ ॥ उद्याने यक्ष मंदिरे। विराज्या धर्म ध्याय ॥ भव्य गण जो हर्षीया । आवी वंद्या ऋषि पाय ॥३॥ जिनदास आदि घ णा । वेठा समायिक ठाय ॥ परोपकारी मुनीवर । धर्मोप देश फरमाय ॥ ४ ॥ | श्लोक ॥ अनित्यानी शरीराणी। वैभवं नैव शाश्वतं । नित्यं समाहितो मृत्यूं । कृतव्यं धर्मः

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122