Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 63
________________ निपजाइ । अनर्था दंड न लीजे ॥धर्मी ॥ ८ ॥ ग्राम बाहिर खेत मही में दवा त्रस जीव । घणा रेखे ॥ कीडी उदाइ मकडी मच्छर । अग्नी जोग मृत्यू लेवे ॥ धर्मी ॥ ९॥ घांस झाड ढूंठादिक तिहां । अग्नी से अल जावे ॥ वाय जोग उपद्रव हुवे कदी । ए मुज | 12 दाय न आवे ॥ धर्मी ॥ १० ॥ सेठ कहे साची कहे भाइ । एहवो अनर्थ नहीं करस्यूं । जो अपणे जीमाणा होती तो । घरे कधी नोतर स्यूं । धर्मी ॥ ११ ॥ इम सुणी ती नों परजलीया । अपणों काइ नहीं चाले ॥ सेठ सेठाणी सुगणी और । जिनदास के हुकमें हाले ॥ धर्मी ॥ १२ निज २ स्थाने सहू जा सूता सुगुणी । ने स्वपनो आयो । प्रेनोरसुख हो तब ही पतीने । यथा तथ्य चेतायो ॥ धर्मी ॥ १३ जाणे आपण गया । प्रदेशे । सुख संपत घणी पाया ॥ पीछे सहू इहां निरधन थइया । फिरता आपणे घर आया ॥ धर्मी ॥१४॥ अग्रगी ओछय अपणे घरे । जेठाणीथी मेंदो पीसायो ॥ ते थाकी , मे ठोकर मारी । यो काइ स्वपनो आयो ॥ धर्मी ॥ १५ प्रितम कहे जंजाल हूं तो । कांइ । व्यर्थ काल न गमावो ॥ समायिक प्रतिक्रमण किजो । गाम के वाहिर जावो । K॥ धनी ॥ १६ ॥ दिन कर ऊगो ग्राम जन सहु । ले सराजाम परिवारो। वाहिर आइ | तेधारी ठाइ । खले इच्छा चारो ॥ धर्मी ॥ १७ सोहन शाह निज पुत्र बधू संग । ग्राम

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