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जि०सु०
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अक्सर आया था। देखो न्हाणी करा मात ॥ ८ ॥ मनमेंला उपर खुशी | छिद्र जोता छेउं रेय ॥ लुगाइ लाय लगावणी | सुण जो चित धर तेय ॥ ९ ॥ ७ ॥ ढाल १ पहली ॥ आगा आम पधारो पुज्य ॥ यह० ॥ धर्मी तेहीज जाणो भाइ । अश्वव में संवर निपाइ ॥ आं ॥ ति अवसर तिहां अरीजय केरे । रीपुजय नाम कुँवारो ॥ अशुभोदय थी वेद नी प्रगती | कीधा बहू उपचारो ॥ धर्मी ॥ १ ॥ रोग उप संतो नहीं देखी । दाना शाणा दो चारो || राजा आगे विचारी बोले । उजलणी करो इण वारो ॥ धर्मी ॥ २ ॥ राय मानता की उजलगीरी । पुत्र ने साता जो थासे । एक दिन गाम में धूंबो न करस्यां | सहू बाहिर भवन निपासे ॥ धर्मी ॥ ३ ॥ वायसे भारे डाल ज्यों भांजे । तिम साता ने जोगे || ततक्षिण बेदना गड़ कुंवरकी । तबही भय निरोगे ॥ धर्मी ॥ ४ ॥ सांजे नगर में डूंडी पीटाई । सहूजन कल गाम बारे || अहार निपाइ वस्तु ले जाइ । जीम जो सहू परिवारे ॥ धर्मी ॥ ५ जो कोइ ग्राम में वो करसी । ते आज्ञा भंग दंड पासे ॥ इम सुण गडबड नची गाज में सहू लागा प्रयासे ॥ धर्मी ॥ ६ ॥ सोहन शाह का तीनो - पुत्र मिल | कहे तात मे इण पेरे ॥ काले सहू सगा सोइ नोथा । जिमांशां आपणे घेरे ॥ धर्मी ॥ ७ ॥ जिन दास कर जोडी बोले । पहवी सला नहीं कीजे ॥ विन कारण आरंभ
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खण्ड ३
१९ कागला
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