Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 10
________________ पण्ड १ जिसमास गयां पुत्र प्रसावे॥धर्म॥ १७ ॥ जन्म मोछब रुडो काना । स्वजन परजन ने सुख बीनो । नालो गाडवा भूमी खोदीवे ॥धर्म ॥१८॥ध्यान निकलीयो ते जागा। तिणथी । सहू का दुःख भागा। द्रव्य देखके हर्षावे ॥ धर्म ॥ १९ ॥ दान पूण्य घणो कीनो। ।। न्याती गोतीने भोजन दीनो। फिर सर्व सन्मुख नाम ठावे ॥ धर्म ॥ २० ॥ जैन धर्मके | पसाये। आइ पुण्यवंत उपनाये । जिनदास नाम सोभाव ॥ धर्म ॥२१॥ सुणी सज्जन सहखुशी भया । तंबाल लेइ निज घरेगया । शुक्ल शी ज्यों मौटा थावे ॥ धर्म ॥२२॥ पहला थीघणी हुइ ऋद्ध बृद्धी । यश : बध्यो होवे काज सिद्धी । सह कुटम्ब आणंदे रहावे॥ धर्म ॥ २३ ॥ तीनो भाइने भणाया । फिर योग्य ठामें परणाया । ते धंदे लागा ने धन | Pal कमावे ॥ धर्म ॥ २४ ॥ पुण्यवंत संजोगे सुखी हुया । आर्त्त दुःख सहू दूर गया । करो सुकृत 'अमोल' चेतावे ॥धर्म॥ २५ ॥७॥दुहा॥ काम साया दुःख वीसर्या । अने ताहू पापी प्रसंग॥ धर्म कर्म सहू छोडीया । विषय तृष्नाके रंग ॥१॥नियम वृत सहू भांगीया। करे। - कंद मूल अहार ॥ निशी भोजन कू वणिज कर । धरे कू विश्ने प्यार ॥२॥ प्रत्येक वर्ष का | INM कुंवरजी। जदा जिनदास ॥ कोविद आध्यापक कने । बेठा करण अभ्यास ॥ ३ ॥ बुद्धि बल तल देखके। उपाध्याय हर्षाय॥ सीखे सिखावे चूंपधर। क्यों नहीं पाण्डत थाय॥

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