Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 47
________________ मा० ॥ सं ॥ २० ॥ खादत भूइ ऊंडी तिहां । खननन बाजी कुदाल मा०॥ संप तिहां सुख संपजे । अमोलकही पंच ढाल मातजी ॥ संप ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ कर जोडी कहे सेठ से । इहां है कोइ चीज ॥ झणकार हूयो खोदतां । दीठां चमके बीज ॥ १॥ हर्षी जोवे सेठजी । धातू पत्र निकाल ॥ निधी प्रगटी द्रव्य की । हुवा घणा खुशाल ॥ २॥ वाहिर चरु ते काहाडीयो । नीचे दूजो देखाय ॥ इम दूजो तीजो काहाडके ।संतोNष मनमें लाय ॥ ३ ॥ श्लोक ॥ अतिःलोभो न कृतव्य । अतिः लोभ दुःख दायकं ॥ अ. तिः लोभ प्रशादेन । बहू प्राणी मरणां गतः ॥ १॥ ॥ दुहा॥ अति लोभ नहीं काम । को । इम जाणी दीधूल ॥ पुण्य जोग इत्तो मिल्यो । हुया कर्म अनुकुल ॥ ४ ॥ मेल्यो । धन घर के विषे। कियो सुख खान पान ॥ द्रव्य तिहां सर्व संपजे । सुणो लगाइ कान । ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल ६ छट्टी ॥ दया धर्म पावे तो कोइ पुण्यवंत पावे ॥ यह ॥ संप-17 रख्या इछित सुख पावे | पुण्यवंत ने संप सुहावे जी ॥ रुठी लक्ष्मी संपी घर आवे । | नित्यानंद रहावे जी॥ संप ॥ १॥ तिणही नगरी माहे रहवे । स्वर्ग शाह धनवंतो जी ॥ बहुल परिबारी रहवा काजे । मोटी जागा बांधतो जी ॥ संप ॥ २ ॥ बहु भो| मीयों ने बहु रंगे रंगीयो । मध्या बजार के मांही जी ॥ ते जागा धनदत्त

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