Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 55
________________ तुम राखो रेवू थारे जी ॥ इम ॥ १५ ॥ इम सुण क्रोधे धमधम्यो । कहे निकलतूं। वेगीरी । सेठ जी पास रही नहीं । तो महारे पास किम रहगीरी ॥ इम ॥ १६ ॥ तीजो कहे वाले मती । चौथे वाहिर कहाडी जी ॥ पांचमें गाली दी तेहने । छट्टे तेहने || ताडी ॥ इम ॥ १७ ॥ बेटे पोते पर पोतडे । मा बेटी बहू पोती जी ॥ मन देख्यो सघला तणो । सुरी सहू घर पहोंती जी ॥ इम ॥ १८ ॥ आदर किण दीधो नहीं । अपमान हुयो सहू ठामजी ॥ तव सुरी एकांत आइ ने । पस्ताइ विचारे आम जी IN इम ॥ १९॥ किहां जावू किहां रहूं । यह तो घर नहीं छूटे जी ॥ वेला पाडूं सेठ में । तब इनको मन टूटे जी ॥ इम ॥ २० ॥ इम विचारी सेठ पे | पाछी लक्ष्मी आइजी॥ ढाल आठमी अमोलखे । संप कह्यो सुखदाइ जी ॥ इम ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ कमला कहे अहो सेठ जी । जागो के सूता आप ॥ सेट कहे जागू अळू । कुण तुम काज कहो साप ॥ १ ॥ सा कहे हं लक्ष्मी अछ । सेठ कहे फिर एम ॥ रीसाइ गया हता। पाछा आया केम ॥ २ ॥ त्रीदशी कहे सेट जी । मे जावू किण पेर ॥ कहो धन संपत किण तणी । किनको हे यह घेर ॥ ३ ॥ सत्य वादी शाहाजी कहे । ऊडोकरी | विचार ॥ धनी हुइ सामग्री सौ । लक्ष्मी का सहू धार ॥ ४ ॥ निर्जरी

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