Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 53
________________ N भणी जी २ कांइ । कर जो कोई विचार ॥ लक्ष्मी ॥ २४ ॥ताइ काम करताथ कां जी - कांइ । माथे न रहे आल । ऋपि अमोलख ए कही जी २ कांइ । दूजे खंड सात ढाल ॥ लक्ष्मी ॥ २५॥ ॥ दुहा ॥ सेट कहे दिन ऊगतां । ऊंडो खाडो खोदाय ॥ तिणमा | तुजने पूरस्यूँ । जिम तूं सुखथी रहाय ॥ १ ॥ खिशशाणी कमला हुइ । कहे सुण सेठ अजाण ॥ खड्डे पूरे मुज भणी । हे कचरो के पहाण ॥ २ ॥ नहीं रहूं क्रोड यत्नथी । १ फत्थर क्षिणेक तुज घर मांय ॥ सेठ कहे जावो सुखे । मुजने फिकर न कांय ॥ ३ ॥ सुभाग्ये संपत मिले । दू भाग्ये विरलाच ॥ो नरोला जो करे । सो आखिर पस्ताय ॥ ४ ॥ म्हारे गरज अन्न वस्त्र की। सो मिलाशां: सह साथ॥ संप धरी सुख से रहां। खरो भरोसो जग नाथ ॥ ५॥ ॥ ढाल ८ आठमी ॥ समाकित रत्नाचंतामणी ॥ यह ॥ इम बचन सुणी सेठ का । श्री सुरी रीसाइजी । किण घर जावू चिंतवे । जिहां मुज आदर थाइ जी ॥ इम ॥ १॥ प्रथम गइ । राज मेहलमें । देखे ज्ञान लगाइ जी ॥ अन्याय अकृत्य होवे घणा । लूट्या अपुत्र्या तांइ जी ॥ इम ॥ २ ॥ संग्राम में अनेका तणा । कट्टा हुया इण ठामें जी ॥ इहां रहणो जुगतो नहीं । लाग स्यूं खोटे कामे जी ॥ इम० ॥ ३॥ आगे गइ ब्राह्मण घरे । मृत्युक को धन दीठोजी॥ होमे हणे घणा प्राणी यां । खरचण

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