Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 51
________________ |त्तरतास ॥ लक्ष्मी ॥५॥ सूतोपण जागू अछू में। कुण तुम आया किणकाज॥राते नारी अन्य स्थानकेजी २ कांड। जातां धरछे लाज ॥ लक्ष्मी ॥ ६ ॥ साकहे हूंलक्ष्मी सुरीजी काइ । जोइ तुम घरहाल ॥ चेतावण आइ अझंजी २ कांइ। तुमघर मुजन संभाल ॥ लक्ष्मी ॥ ॥७॥ मुज कारण घणा भपती जी काइ । ज्यूंजे रणके माय ॥भाग दे सजन शैन्य को जी! २ कांइ । राखण करे उपाय ॥ लक्ष्मी ॥ ८॥ सेठशाहा अकर्त्य करीजी काइ । महारा भणी कमाय ॥ भूख प्यास सीत ताप ने जी २ काइ । गिणेन निश दिन धाय ॥ लक्ष्मी N॥ ९ ॥ राखे गठडी उल्चा विषेजी काइ । तीजोरी कोटडी माय । ताला पहेरा वन्दो बस्त - करी जी २ काइ । गाडे झं खोदाय ॥ लक्ष्मी ॥ १० ॥ सदा राखे मुज अगले जी कांइ। घृत दीप ने धूप ॥ पूजा करे के इशाश्वती जी २ कोइ । दिपावली दिन भूप ॥ लक्ष्मी ११॥मुजने बुलावण कारणे जीकाइ। लीपे पोते गेह॥ वहृरंग रोशनी करेजी २ कांइ। ध्यान धरे धर नेह ॥ लक्ष्मी ॥ १२ ॥ वैपारी मुज कारणेजी काइ । छोडी वृद्ध मा वाप ॥ तरु । Nणी मेली तरसती जी २ काइ । परदेश जावे आप ॥ लक्ष्मी ॥ १३ ॥ माल तणो संग्रह E करे जीकाइ । नगिणे पुण्यके पाप ॥ असंख्य अनंत जंत हणेजी २ काइ । लाज न देखे | कुल खाप ॥ लक्ष्मी ॥ १४ ॥ खेती वाडी करे घणा जी काइ । चीरे पृथवी पेट ॥ पत्र पु

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