Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 54
________________ जि० . ने घणो चीठो जी ॥ इम ॥ ४ ॥ वाण्य घर कपट घणो। कूडा तोला ने मांपा जी खण्ड र कोडी माठे अनर्थ करे । इहां नहीं रवां आपां जी ॥ इम ॥ ५॥ कृषी घरे आरंभ । ला। मुज वापर नहीं जाणो जी। गहूं तणां करे कोदरा । एसंचे किम नाणो जी ॥ इन ।॥ ६ ॥ इम फिरी सह शहर में । सुख को ठाम नहीं जोयो जी ॥ - श्री सह । सदन मर्या । देवी मन नही मोयो जी ॥ इम ॥ ७॥ जैसो संए सुख धन दत्त घरे। धर्मी उदार प्रणामी जी ॥ तेसो तो अन्य घर नहीं । पाछी आइ तिण ठामाजी ॥ इम ९॥ आइ जेष्ट तनुज कने । कहे सूता के जागो जी ॥ सो कहे सूतो जागू अछं । सेठ जी को घर आगो जी ॥ इम ॥ १०॥ कमला कहे तुम पास में । आइ डूं सुख देवा जी। राखा तुम मुज रीत स्यूं। खुशी छ् हूं रहेवाजी ॥ इम ॥ ११ ॥ सेठ जी मुज राखे । | नहीं । तिण थी तुमने चेतावू जी ॥ लक्ष्मी या सह सुख हुवे । नहीं तो आगे जावू जी। | ॥ इन ॥ १२ ॥ ते कहे निकल ट्रहां थकी । बोलण को नहीं कामो जी ॥ सेठ जी | तुज निकाली दीवी । मुज ने नहीं तुज हायो ॥ इम ॥ १३ ॥ इम सुण गइ दूजा कने । ते कहे सेठ पे जावो जी ॥ मे कांइ जाणू नहीं । मुजने मती जगावो जी ॥इम।। १४ ॥ श्री कहे मुजे सेठ जी। काहाडे छे घर बारे जी ॥ मुज गया सहू दुःखीया हूसो । लक्ष्मी

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