Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 58
________________ जि०सु० २७ आपरेहो ॥ संप ॥ १७ ॥ रस्सी बट इणारी कोजे । जाइ बजारमें बेंच दीजे हो ॥संप ॥ खण्ड : तत दाम थी खाद्य बस्त लाइ । सहू बीमासां भोजन निपाइ हो ॥ संप ॥ १८ ॥ चार मोटा ने पाल वेठाला । और सघला ने इम जणाया हो ॥ संप ॥ मूंज घांस यह | तोडी लावो । सहू भाग्या घरी उमावो हो ॥ संप ॥ १९ ॥ बड वृक्ष तले ढग कीधो । | तब बताइ वटवा विधो हो । संप ॥ हाथो हाथ ते कामे लागा। सेठ जी का दुःख । भागा हा ॥ संप ॥ २० ॥ वे आग अश्चर्य कहाणी । संपथकी फले पुण्य वानी हो ॥ संप ॥ वीजे खन्डे ढाल नव भाखी । कहे अमोल संप लेवो राखी हो ॥ संप ॥ ७ ॥ दुहा ॥ असुर थकी लक्ष्ली कह । देख्या भाइ ख्याल ॥ संप इसो में अन्य घर । जो यो नहीं कोई काल ॥ १ ॥ हिवे यह घर किण ने देऊं । फिकर पड्यो अपार ॥ यक्ष कहे हूंता हव । जास्यूं मुज आगार ॥ २ ॥ आयो तस वट ऊपरे । देखी अश्चर्य पाय ।। धन दर सा परिवारल । इहा किम वेठा आय ॥ ३॥ किस्यो काम ए कर रह्या । कांइहै मन में विचार ॥ रखे लक्ष्मी चुगली करी । मुज ने करे खुबार ॥ ४ ॥ मनुष्य जात| में ठेटथी । हावे घणी करामात ॥ प्रगट हुइ चौकश करूं । तब मुज मन स्थिर आत |॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ रघु पति जीत्याजी ॥ यह० ॥ रूप करी मानव तणो

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