Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 59
________________ जी । आयो सेठ सन्मुख ॥ किम यह कार्य आदर्या । किस्यो पड्यो छे थामें दुःख ॥ | १ ॥ संपे सुख पाया जी गई। लक्ष्मी पाया फेर ॥ संपे ॥ ७ ॥ सेठ कहे भाइ स्यूं K करां जी । जो लागे हमने भूत ॥ भूख को भूत निकल्यो मुखे । जिभ्या तोतली सुख के सूत ॥ संपे ॥ २ ॥ वचन सुणी इम सेठका जी ।। २ कंप्यो देव ॥ डरतो कर जोडी कहे । अपराध स्यों भूत को केव ॥ संपे ॥ ३॥ राम बुद्धि वाणीया जी । मुद्रा | तेहनी जोय ॥ जाण्यो यहकोइ नृत छेजी । डर्यो आपणारी सोय ॥ संपे॥ ४ ॥कहे सेठ जी करां किस्पो जी। लक्ष्मी गइ छे रीसाय ॥ काहाड्या घर के वारणे । हम सर्व आया। | इण ठाय ॥संपे ५॥ भूतने इणथी वांदस्यां जी । करस्या न्हाणो काम ॥ भूत कर जोडीने । कहे। मत बान्धो मज को श्वाम ॥ संपे॥ ६ ॥ कमाइ महाराहाथकी जी। बारे कोड ।। दीनार ॥ इण वड नीचे गाडी हमे । ते लेवो आप स्विकार ॥ संपे ॥ ७ ॥ सेठ कहे किहां राखां हमे जी । रहवाने नहीं ठोड ॥ लक्ष्मी फिर करसी इस्यो तो। किंहा जास्य | घर छोड ॥ संप ॥८॥ भूत कहे लक्ष्मी भणी जी० मेंमनावू लाय॥सेठ कहे इच्छा तुम तणी । म्हारेतो कुछ नहीं चहाय ।। संपे ॥९॥ शिघ्र जाइ कमला कने कहे । क्यों लगाया मुज लार ॥ इन को में किस्यो वीगा डियो । सह लेठा महारे द्वार ॥ संपे ॥ १० ॥ के

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