Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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ली छूता । इनमें रहतो आपणो मन गुंतो ॥ संप ॥ ८ ॥ आजतो हलका थइया । स कर मनरा गइयाहो ॥ संप ॥ तीनश्वस्त्र सहूपास राख्या । वीजा वस्त्रगहणा न्हाख्या हो ॥ संप ॥ ९ ॥ तमाशो लक्ष्मी जोइ । अतीअश्चर्यं मनमें होइहो ॥ संप ॥ धनकोंसहूजन चहावे । माहों माहें सज्जन भंडावे हो ॥ संप ॥ १०॥ मा बेटी ने बहू सासू । बापबेटा लडे सगासुं हो || संप | जुदाहोवेने दरबारे जावे । मात तात जात गुरु लजावे हो ॥ प ॥ १९ ॥ शस्त्र विष आगी से मरेमारे । धनप्राणसे अधीको धारो ॥ संप ॥ इहां येही अश्चर्य मोटो । सेटहुकुमसे त्याग दीया टोटोहो | संप ॥ १२ ॥ फिरसेटजी कहेसहू तां । सहू चालो म्हारी लारांइहो | संप | सहूधनदन्त लारे थइया । घर खुल्ल छो डी बाहिर गइयाहो | संप ॥ १३ ॥ देखे नगर की सोभा । सहूका मनरह्या लोभा हो । सं प॥नवी रचना जोता जावे । पण किंचित सोग न लावेहो || संप ॥ १४॥ सहू ग्रामके वाहिर आता । तब दिनकर तेज दीखाता हो | संप | सेठ देखी सघलका मूंडा । मनफिकर| माहे पेठा ऊंडाहो ॥ संप ॥ १५ ॥ हिवणा पहर दिन आसे । सहू जणा भूखे घबरासे हो |||प || मांगसी खाबा ताइ । तब किहांथी देस्यूंहूं लाइहो ॥ संप ॥ १६ ॥ इम सोच करता जये । इतरे जलभर नालो आवेहो || संप || तेदेखी सेटजी विचारे । इहां मूंज ऊगीछे

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