Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 52
________________ मप्य फल बेंच ताजी २ कांइ करे केइ अखेट ॥ लक्ष्मी ॥ १५ ॥ गुलामी करे गाल्यासहे जी | खण्ड २ काइ । उठावे बजन अपार ॥ गामागाम फिरे भटकताजी २ काइ । होइ लमी पे उदा १ शिकार र ॥ लक्ष्मी ॥ १६ ॥ केइ मारे अनाथने जी काइ । केइ मारे सज्जन । मुंडचीराइ केइ का रेजी २ काई । केइ होवे कृत्यघन ॥ लक्ष्मी ॥ १७ ॥ केइ तपसी तपतपेजी। काइ । केइ ज्ञानी गीत गाय ॥ मागता फिरे बजार में जी २ कोइ । ऊंच-IN नीच ने रीजाय ॥ लक्ष्मी ॥ १८ ॥ सुर सीपाइ मुज कारणे जी कांइ । रण-16 वे सीस ॥ नटवो नाचे डोरपेजी २ कांड। लेवण भणी वकसीस ॥ लक्ष्मी ॥ - १९ ॥ इत्यादी केइ विश्व में जी कांइ । लक्ष्मी को करे प्रयास ॥ ऐसा तो विरला होसी जी २ कांइ । जो काटी त्रष्णा फास ॥ लक्ष्मी ॥२०॥ उनको पण में नहीं मिलूजी कांड। IM करतां क्रोड प्रकार ॥ विन प्रयत्ने तुम घरे जी २ कांइ। आइकियो प्रसार॥ लक्ष्मी॥२१IN ठोकर में ठेलोमन जी कांइ । खरचण करो ना विचार ॥ बंदोवस्त किंचित नहीं जी २ कांइ। ले जाबे केइ गीवार ॥ लक्ष्मी ॥ २२ अपमान घणों सह्यो हमें जो काइ । आज तांइ तुज घेर ॥ हिवे मन भाग्यो म्हारो जी २ कांइ । राखी न रहूं कोई पेर ॥ लक्षी २३ ॥ अपमान स्थाने रेवतांजी कांइ । लाज आवे छे अपार ॥ चे ताव वा आइ तुम २४

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