Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 31
________________ हिवे मनकी फरमावीयेरे लाल । जिम मिटे सर्व जंजालह । प्रा० ॥ ऋषी अमोलख एक हीरे लाल । द्रढ धर्मीकी नवमी ढाल हो प्रा० ॥ सू० ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ हर्षी क जिनदासजी | सत्य तुमारा वेण । इमही हूं जाणूं अछू । पण किम समजावू सेण ॥ १ ॥ घर अधर्मी ठेट थी । जाणे न लोक परलोक ॥ उपदेश में दीयो घणो । बात हुइ सहू फोक ॥ २ ॥ मुज शक्ती ए गुरु कने । कीधामे पञ्चखाण || पालू महारा आत्मथी । दोष नलागे जाण ॥ ३ ॥ सुगुणी कहे सासूजीने । में समजाया आज ॥ सुसराजीने पूछ के । करसी यन का काज ॥ ४ ॥ आप पण सुसराजी भणी । अवसरे दे उपदेश । समजावो मार्ग जैन को । जचावो धर्मकी रेश ॥ ५ ॥ इम संप हुवो दंपती विषे । धर्म चरचा बहु कीध । जाण पणो जोइ उभयते । आणंया इच्छा सिद्ध || ६ || सामायिक प्रतिक्रमणो । भेला करे नित्य नियम ॥ सीखे सीखावे आपसे । दिन २ चडता प्रेम ॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ फाग । गरभे मती देख सुंदर काया ॥ यह० ॥ इण जीवने धर्म छे सुखदाइ ॥ इण० ॥ आं || दूजे दिन जिनदास अवसर देखी ॥ पिता जी चरण में नम्या आइ ॥ इण० ॥ १ ॥ सोहन शाह सन्मानी पूछे । आज बखाण किस्या सुण्याइ ॥ इण० ॥ २ ॥ कर जोडी जिनदास पयंपे । आज जैन रीती

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