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जी० सु०
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प्रा० ॥ जाण अजाण इमथे किम हुवारे लाल । केको पीधी भंगहो प्रा० ॥ सु ॥ १२ ॥ अनंत मेरु मिश्री भखीरे लाल । पहर्या वस्त्र जग भारहो प्रा० ॥ त्रप्त नहीं हुयो जीवडारे | लाल । तोहिवे होवे किम पारहो प्रा० ॥ ॥ १३॥ किंपाक फल सम भोगछेरे लाल । देवलोके | भाग्या बहुवार हो प्रा० ॥ तो त्रप्ती इहां किम हुवेरे लाल । भोगी तुच्छ घिनकार हो प्रा० ॥ सू ॥ १४ ॥ इणही कारण धर्मी भइरे लाल । सीख्या धर्म को ज्ञानहो प्रा० ॥ उपरसे | साभ्या घणारे लाल । पण नहींगयो अभीमान होप्रा० ॥ सू ॥ १५ ॥ अनंतानंत पुण्यके उदय लाल । पाम्या धर्म की रेसहो प्रा० ॥ मींजी किम भौजी नहीरे लाल । अश्चर्य मुज ए विशेस हा प्रा० ॥ सू ॥ १६ ॥ समकित विन क्रिया सहूरे लाल । जैसे लीपण छार होप्रा० ॥ अनंत संसार इमहीं भम्यारे लाल । न आइ श्रधा सार होप्रा० ॥ सू०॥१७॥ अवसर ए उत्तम लहीरे लाल । मत डूवो काली धार हो प्रा० ॥ शक्ती मुजब करणी करीरे लाल | सुधारो अवतार हो प्रा० ॥ सू० ॥ १८ ॥ खटको राखो आगल तणोरे लाल । वली मुज देवो संतोष हो प्र० ॥ निज कुल धर्म समाचरोरे लाल । तन धन | का जो दोष हो प्रा० ॥ सु ॥ १९ ॥ में रुप देखी आपकोरे लाल । लागी नहीं कछू लारहो प्रा० ॥ गरज एक धर्म तणीरे लाल | देखी कीया भरतारहो प्रा० ॥ सू० ॥२०॥
खण्ड १
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