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जीव धर्म मग आवेजी ॥धर्मी ॥ १३॥ दोष नहीं कछु इनतणो । अंत्तराय उदय देखजी । । जिम पील्याका रोगसे । धोली वस्तु पीली पेखेजी ॥ धर्मी ॥ १४ ॥ जैसा भविस्य होवे खण्ड २ जेहना । तेहवी बुद्धी तस आवेजी ॥ करसी ते तिसो पावसी। आपणो कांइ जावेजी ॥ धर्मी ॥ १५ ॥ आजपछे यां छेउने । धर्म कार्य के मांहीं जी। सीखामण देणी नहीं जिम सम्प घरमें रहाइजी ॥ धर्मी ॥ १६ ॥ अनाचार घर के विषे। मावित्र होणे न देसीजी ॥ कहणी सो मावित्रने । तिणथी शोभा रहसी जी ॥ धर्मी ॥ १७॥ पुर्वोक्त रीते नित्य प्रते । यत्ना करे धर्मपाले जी ॥ ते छेउं खेटा करे । घरमे झगडा केइ घालेजी ॥ | धर्मी ॥ १८ ॥ मून धरी रहे उभयते । द्रबे भावे सुख मानेजी ॥ द्रबे यशःफेले लोकमें। | मावित्र गुण पेछाणे जी ॥ धर्मी ॥ १९॥ भावे सहे समभाव थी। समर्थ एकही गाली। | जी । ते अनंत वर्गणा कर्भ की। देवे क्षिणने वाली जी॥धर्मी ॥ २० ॥ धर्म ज्ञान पायां | तणो । सार यह सह झालो जी ॥ अमोल बीजा खन्डकी । कही यह पहीली ढालोजी॥ | धर्मी ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ जेठाणी तीनों तदा। गुणविन भरी अहंकार ॥ सत्कार सुख | सुगुणी तणो । देखी जले आपार ॥ १ ॥ कुचकेरणी करे घणी । सुगणी न धरे ध्यान ॥ नित्य नियम सदा साचवे । राखे तीनी को मान ॥ २ ॥ तीनों निज २ कंत का । राते