Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 44
________________ बी० युर २० राज पुत्र तब खुशी होय ने । कहे सच कहे पटेल || मंजी पुत्र को वान्थ्यो स्थभे । देखो को खेल || भाइ० ॥ १८ पाछल एकला रह्या राज सुत । कहे कृषी जोर लाय ॥ फूट राजा हो कर चोरी करतां । शरम जरा नहीं आय ॥ भाइ० ॥ ॥ १९ ॥ पकडी बान्ध्यो चौथे स्थं । करी तबही पुकार ॥ दोडो २ चोर पकडीया । लोक जम्या आ अपार || भाइ० २० || खबर हुइ चारों का तात ने । चारुं को कियो अपमान ॥ फिट २ हुवा बहू दुःख पाया । इर्षाका फल जाण ॥ भाइ० || २१ जो चारुं ते संपथी रहता | तो कुण देता दुःख । इम सुण संपकरो सहुजन । जो चाहीये छे सुख ॥ भाइ ॥ २२ ॥ इम सुणी तीनों भाइ चुपरही। लाग्या निज २ काम ॥ कहे अमोल यह ढाल चतुर्थी । उपदेश बडो गुण धाम || भाइ || २३ || ७ || दुहा ॥ राते तीनी कंतने । पूछे कीधो केम ॥ ते कहे सार न फूटमें । रहो हिल मिल धर प्रेम ॥ १ ॥ नारी कहे तुम नर हुइ । करीन जाणो बात ॥ प्राते हम जुदा हुवां । देखो हम करामात ॥ २ ॥ प्राते तीनो सासूपे । आइ हो विकाल ॥ भलो चाहो तो हम भणी । जुदा करो इण काल ॥ ३ ॥ सासू समजावे घणी । तेह नहीं माने लगार | सुगुणी सुण आइ तिहां । पूछे सासू तेवार ॥ ४ ॥ कियो सुण्या बाण में । सुगुणी अवसर जोय ॥ कथा कहे संप कारणे । सहू सुणे खण्ड २ २०

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