Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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जा० सु०
१८
ते सांभलो । एक वसतोहो पुर वसंतगाम ॥ कमलाकर शाहा तेहा में। धनवंता हो। जगमें सू नाम ॥ संप ॥ ६ ॥ तस महीला नाम सुन्दरी । तस अंगर्थी हो उपना पांच | खण्ड २ पूत ॥ रुप बुद्धि बले शोभता । पुण्यवंताहो अंगमें मजबूत ॥ संप ॥ ७ ॥ बल लाभ दे। खी एकएकको ।ईर्षा हो लावे मन माय ॥बात२ में लडी पडे। इम कूसंपहो बधवा लाग्यो । सवाय ॥ संप ॥ ८॥ पिता समजावे बहु विधे । सिखामण हो ते धरे नहीं कान ॥ था-IN क्या सजन कू संपथी । दिल धरता हो पांचों अभीमान ॥ संप ॥ ९॥ एक दिन कोइ कठीयारो । काष्ट भारीहो लायो सेठ के धाम ॥ मोल लेइ न्हाखी चोकमें । विदा कीधा । हो देइ तसदाम ॥ संप ॥ १० ॥ बुलाइ पांचू पूतने । कहे तुमछो हो पांचों प्राक्रम पूर ॥ नवयोबन मदमें भर्या । दुशमणने हो राखो छो दूर ॥ संप ॥ ११ ॥ एक कह्यो महारो करो । बन्धी भारीहो कोइ तोडो मचकाय ॥ तो प्राक्रम थांरो खरो। मोटो बेटो हो उठी तिहां आय ॥ संप ॥ १२ ॥ प्राक्रम कीयो अतीघणो एक लकडीहो भागी तब नाय ॥ बीजा पणतिमही कियो । इम पांचूहो हारी कहे वाय॥ १८ संप ॥ १३ ॥ तात कहे पांचू मिली । भागो हो इण भारी तांय ॥ पांचू मिल जोर कियो घणो । तस मेहनतहो निर्फल सहु जाय ॥ संप ॥ १४ ॥ कहे यहतो भागे नहीं । कीधा

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