Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 38
________________ शि०सु ॥ प्राणश्वर साहेब प्यारा । में जोडायत बज्यां थांरा । एक तुमचा हमने आधारा हो । इम ॥ १० ॥ झट इणरो वंदोवस्त कीजे । जीम तुम हम तन नही छीजे । नित भोगसुख लावा लीजे हो ॥ इम ॥ ११ ॥ सूसराजी पासे जाइ । लेवो धन की पांती पडाइ॥ अब शरम राखणी नाही हो ॥ इम ॥ १२॥ जदी जागा लीजे। तिण मांडेवासो कीजे | फिर सदा मजा मे रीजेहो ॥ इम ॥ १३ ॥ थे करसो नित्य कमाइ। खरच थोडो सो थाइ । सह धन रहसे घरमांही हो ॥ इम ॥ १४ ॥ थोडा दिने श्रीमंत थास्यां। देवररी गुम | | राइ गमास्यां । लोकाने प्रत्यक्ष बता स्यां हो ॥ इम ॥ १५॥ देवर तो कमाइ न जाणे।। अब खाइ पेहरी ने मजा माने । सहधन्न गमास्ये हाणे हो ।। इस ॥ १६ ॥ देराणी भरी ।। गुमराइ । कछ काम ते करसी नाही । नोकर सह धन खाजाइ हो ॥ इम ॥ १७॥ इण पर यह दुःखीया थासे । तब अकल ठिकाणे आसे । पीछा आंपाने मनासे हो ॥ इम ॥ १८॥ और माज घणी स्वमी। आंपा पास्य घणी आरामी । काण हटक नहीं नामी हो । १७ ॥ इम ॥ १९ ॥ में ऊनी रसोइ नीपास्यूं । नित कने बेट जिमास्यूं । वली ठन्डो पाणो | पास्य हो ॥ इम ॥ २० ॥ इम तीनी पती ने भरमाया । ए काम तीनांरे मन भाया ।। ढाल बीजी अमोलख गाया हो ॥ इम ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ प्राते उठ तीनों जणा ।

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