Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 39
________________ - सला कर आपस मांय ॥ पिता पास आइ कहे । सूणो तात चित लाय ॥ १॥ साठी! || बुद्ध न्हाठी कही । अक्कल नहीं तुम ठाम ॥ माथे चडायो जिनदास ने। करे नहीं कछ काम ॥ २ ॥ नित जा बेटे मुह बांधने । पूजणी लेइ हाथ ॥ बाबो होसी थोडा दिने । । करी बाबा को साथ ॥ ३ ॥ के तो तस समजाय के । लगावो धंधे कोय ॥ नहीं तो म्हाने जुदा करो। जिम सह को सुख होय ॥ ४ ॥ एतो वंदोवस्त किया । लज्जा रहसी Nतात ॥ नहीं तो फिर लोकां मांही । भांड होसो कहां वात ॥५॥ ७ ॥ ढाल ३ तीसरी॥ वीर सुणो मेरी वीनती ॥ यह ॥ सुणी वचन तीनों पूतका । सोहन शाह हो चिन्तेमन * माहे ॥ आभागी सुखमें दुःख चहे । पोता को हो नोवे नशीब नाहे ॥ १ ॥ संप सदा | सुखदाय है । संपथी हो संपत वणीरेय ॥ दुशमन दाव लागे नहीं । सजनमें हो ते शोभा लेय ॥ सं० ॥२॥ समजावण भणी तीनी ने। धीरज दे हो कहे संप त्या सुख ॥ किस | का नशीबकी लक्ष्मी । कू संपथी हो पासो घणो दुःख ॥ संप ॥ ३ ॥ घणा जणा भेला | रह्या । घणा को हो तिणमें रहे भाग ॥ 'घण जीतारे लक्ष्मणा' । यह कहवत हो सुख । देवे घणी जाग ॥ संप० ॥ ४ ॥ त्रण घणाकी रासडी । बान्धे हो मोटो गजराज ॥ घणी कीड्यां मारे नागने । घणा मिलहो करे घणो काज ॥ संप० ॥५॥ द्रष्टांत कहूं

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