Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 29
________________ मुज मन भर्महो प्रा० ॥ सू० ॥ ३॥ साची श्रधा जो हुवेरे लाल । तो क्योनी सुधरे कुलहो प्रा० ॥ कपट क्रिया जो कररे लाल । तो किहां समाकित मूलहो प्रा० ॥ सू० ॥ ४॥ इम चिंतामें ते पडीरे लाल । शिशामें आया जिनदास हो प्रा०॥ सत्कार देही उभी । रहीरे लाल । देखी तिण ने उदास हो प्रा० ॥ सू० ॥ ५॥ पूछे कंथ मिठाससे रे लाला चितचिन्ता में देखाय हो। सोभाग्यवती ॥ कारण कांइ दाखवो रे लाल । जे उपज्यो मन । माय हो सोभा० ॥ सू० ॥६॥ सुगणी कहे सुणो साहीवा रे लाल। स्युं करूं बात प्रकाश हो प्रा० ॥ कपट करी मुजने ठगीरे लाल । घात की दे विश्वास हो प्रा० ॥ सू० ॥७॥ हूँनहीं जाणती तुम घरे रे लाल । एहवो छ अधर्म हो प्रा० ॥ परसंस्था सुण मोहीमें रे । | लाल । आज फूट्यो सहू भम हो प्रा०॥ मू० ॥ ८॥ श्रावक नाम धरावीयो रे ॥ वली भया जाणकार हो प्रा० ॥ अनर्थ इशो घरके विषेरे लाल। नहीं आचार विचार हो प्रा० । |॥ सू ॥ ९॥ चीडावा सुगुणी भणी रेलाल । कहे इसो जिनदास हो॥सो॥ आचार घर | हलवाइकेरे लाल । विचार हम आवास हो सोभा० ॥ सू॥ १० ॥ खावो पहरो इच्छि | त सदारे लाल। भागवो नवला भोग हो सोभा०॥ येही विचार सुख दायनारे लाल । मि । | ल्यो तुम हम जाग हो सो०॥सू॥११॥ सुगुणी कहे ठीक नाथजीरे लाल। करी सुगुरुको संगहो ।

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