Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
View full book text
________________
थी होवे मरणो ॥ सुणो ॥ १० ॥ तेल दूध घी पाणी दही। उघाडा रझा जीव पडे सही। । ते वस्तु होवे विषमही
भव दुःख हाही ॥ सुणो ॥ ११ ॥ आटा दाल * जो जोवे नहीं । बलीतो विन देख्या बले जही । लट जाला कुंथवा प्राण दहीं। मशाण | तुल्यते चूल कही ॥ सुणो ॥ १२ ॥ चूले चंद्रवो न बंधावे । नीचे भोजन निपजावे । विसमरादी पडे आवे । ते खाया रोग मरण थावे ॥ सुणो ॥ १६ ॥ इम परेंडे घटी पर जा । यो । उखल पर वस्त्र तणो । तो नहोवे स्वपर हाणो । वली लोक करे घर बखाणो ॥सुगो ॥ १४ ॥ मांकण भरी छावे भीतां । खाट पीलंग उष्णोदक देता । ते महाजन महा| जम जेता । हिंशारीका जाय जन्म रीता ॥ सुणो ॥ १५ ॥ अथणा पाक घणादिन राखे।
लडे फुलण आया बहिर न्हाखे । त्रसनिगोद घातकरे भाखे । भोगविया दुःख रोग चाखे॥ | नुणो ॥१६॥ ज्यूंबां लीखांने जेमारे। इंडाफोढे कीडा जाले। गोबर संग्रही जंतूसंहारे। इण करें | दोइ भव खूबारे॥सुणा ॥१७॥ इत्यादि घणा अधर्म कामां। छोड्याथी सूख अभीरा| मा। दोइ भव पावे सुख ठामा । यह मानो तो में साता पामां॥सणो ॥ १८ ॥ वली ए |क, सामायिक नित करणी। तिण थी समज सो धर्म तरणी । सामायिक मोक्ष नीसर |णी । मान्या थी सख पासो जरणी ॥ सुणो ॥ १९ ॥ आपतो पहली शाणा घणा। ज

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122