Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 25
________________ 1 1 जी । पती तणो गृहबास || अधर्मी पशु थी बुरो । हूंतो खन्डू न जातां सास जी ॥ अ० ॥ ॥ १८ ॥ खास्यूं मुज पीयर तणो जी । जेलाइ संग अहार || पीवस्यूं पाणी मंगाय ने मुज धर्मेण दासी लाररे ॥ अ० ॥ १९ ॥ समझाइ इहां करावस्यूं जी । धीरपे सहू बंदोवस्त ॥ नही तो रहस्यूं पीयरे । इम मनसूबो करी परससतरे ॥ अ० ॥ २० ॥ बेठी हाथ खेंची कराजी । ढाल सातमी माय ॥ अमाल ऋषी कहे धर्मथी । भाइ चिंतित कार्य थायरे || अ० || २१ || || दुहा० ॥ सामू जेठाणी मिली | करे जिमण मनवार || सुगणी तो माने नही । सहू थाक्या ते वार ॥ १ ॥ दासी पास मंगाइ यो । पीयर थी खान पान || ते वावरी तिहां रही । धरती आर्त ध्यान || २ || सासू सुसरा चिंता करे । मोटा घरकी बाल || आपने यहां सुहावे नही । तिनथी करे यह ख्याल ॥ ३ ॥ दोपहरे सासू साथले | दानी शाणी जार | मीठासे पूछे बहूथकी। कहो मनमें स्यूं विचार ॥ ४ ॥ बाइ तूं श्रिमंत की । गरीब हमारो घर | उम्मर : तुज किम निकालसी । जो करसी इण पर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ८ आठमी ॥ सुणो चंदाजी सीमंधर परमात्म पासे जाव जो ॥ यह ॥ सुणो सासूजी में नहीं जाण्या तुम घरे इसो अधर्म छे ॥ तुम जै नी जी मिथ्यात्वी का किम करो यह कर्म ले || आं ॥ हुं सामें बोलण नहीं जोगी । प

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