Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka
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ख्या नही । पूंज्या न चूले राख ॥ घट्टी मांडी रातका । तीथीने लाया शाख ॥ ३ ॥ यनाही त्रस जीव की । राते भोजन खाय ॥ उठी तुर्त धंदे लगे । नवकार नहीं सुणा - यू ॥ ४ ॥ मिथ्यात्वी भारी कर्मी । हेसहु इण घर मांय ॥ ऐसे अधर्मी स्थानके । मुजसे किम रहवाय ॥ ५ ॥ ● ॥ ढाल७ सातमी ॥ बलती तो देखी द्वारका ॥ यह० ॥ सदन देखी अधर्मिको जी । सुगुणी हुइहै उदास । आरती आणे अति घणीरे । मनमाहीं क रेविमासजी ॥ १ ॥ अधर्म नसुहावे ॥ ० ॥ पहिलाई मे तातनेजी । को थो लज्जा छोड ॥ मिथ्यात्व को दीजोमती । पण आखिर लागी ते खोडजी ॥ अ० ॥ २ ॥ रे ! मुज कर्म अभागीया जी । पडीखड्डामें आय ॥ जन्म डूबावण या जगा । म्हारो आचार रहे किराहाय जी ॥ अ० ॥ ३ ॥ हयहय कर्म अभागीयारे । में पूर्व कियाकठोर ॥ धर्मी कुल पामी करीजी | मिली मुजको कूठोडजी ॥ अ० ॥ ४ ॥ हिंशा करी अलिक भरव्यारे । चोरी करी भांग्यो सील || ममता करी क्रोधेचडी । मान माया लोभमें लीलरे ॥ अ० ॥ ५ ॥ प्रेम द्वेष राख्यो मनेरे । क्लेशे लगाइ लाय || चुगली करी आलदियाहुसेरेः । निंदा सुण हर्षायरे ॥ अ० ॥ ६ रत्यारस्य माया -मोशोजी । मान्यों मिथ्या मत ॥ इत्यादी पापे इआइ । अब किम रहसी भुज सतरे ॥ अ० ॥ ७ ॥ अश्चर्य आवे अती घणोजी । नि

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